दृष्टिकोण

एक दिन एक शिष्य ने गुरु से पूछा, ‘गुरुदेव, आपकी दृष्टि में यह संसार क्या है?’ इस पर गुरु ने एक कथा सुनाई| ‘एक नगर में एक शीशमहल था| महल की हरेक दीवार पर सैंकड़ों शीशे जड़े हुए थे| एक दिन एक गुस्सैल कुत्ता महल में घुस गया| महल के भीतर उसे सैंकड़ों कुत्ते दिखे, जो नाराज और दुखी लग रहे थे| उन्हें देखकर वह उन पर भौंकने लगा| उसे सैंकड़ों कुत्ते अपने ऊपर भौंकते दिखने लगे| वह डरकर वहां से भाग गया| कुछ दूर जाकर उसने मन ही मन सोचा कि इससे बुरी जगह नहीं हो सकती| कुछ दिनों बाद एक अन्य कुत्ता शीशमहल पहुंचा| वह खुशमिजाज –जिंदादिल था| महल में घुसते ही उसे वहां सैंकड़ों कुत्ते दुम हिलाकर स्वागत करते दिखे| उसका आत्मविश्वास बढ़ा और उसने खुश होकर सामने देखा तो उसे सैंकड़ों कुत्ते खुशी जताते हुए नजर आए| उसकी खुशी का ठिकाना न रहा| जब वह महल से बाहर आया तो उसने महल को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ स्थान और वहां के अनुभव को अपने जीवन का सबसे बढ़िया अनुभव माना| वहां फिर से आने के संकल्प के साथ वह वहां से रवाना हुआ|’ कथा समाप्त कर गुरु ने शिष्य से कहा, ‘संसार भी ऐसा ही शीशमहल है| इसमें व्यक्ति अपने विचारों के अनुरूप ही प्रतिक्रिया पाता है| जो लोग संसार को आनंद का बाजार मानते हैं, वे यहां से हर प्रकार के सुख-आनंद के अनुभव लेकर जाते हैं| जो लोग इसे दुखों का कारागार समझते हैं उनकी झोली में दुःख-कटुता के सिवाय कुछ नहीं बचता|’

You Might Also Like

0 comments