एक दिन एक शिष्य ने गुरु से पूछा, ‘गुरुदेव, आपकी दृष्टि में यह संसार क्या है?’ इस पर गुरु ने एक कथा सुनाई| ‘एक नगर में एक शीशमहल था| महल की हरेक दीवार पर सैंकड़ों शीशे जड़े हुए थे| एक दिन एक गुस्सैल कुत्ता महल में घुस गया| महल के भीतर उसे सैंकड़ों कुत्ते दिखे, जो नाराज और दुखी लग रहे थे| उन्हें देखकर वह उन पर भौंकने लगा| उसे सैंकड़ों कुत्ते अपने ऊपर भौंकते दिखने लगे| वह डरकर वहां से भाग गया| कुछ दूर जाकर उसने मन ही मन सोचा कि इससे बुरी जगह नहीं हो सकती| कुछ दिनों बाद एक अन्य कुत्ता शीशमहल पहुंचा| वह खुशमिजाज –जिंदादिल था| महल में घुसते ही उसे वहां सैंकड़ों कुत्ते दुम हिलाकर स्वागत करते दिखे| उसका आत्मविश्वास बढ़ा और उसने खुश होकर सामने देखा तो उसे सैंकड़ों कुत्ते खुशी जताते हुए नजर आए| उसकी खुशी का ठिकाना न रहा| जब वह महल से बाहर आया तो उसने महल को दुनिया का सर्वश्रेष्ठ स्थान और वहां के अनुभव को अपने जीवन का सबसे बढ़िया अनुभव माना| वहां फिर से आने के संकल्प के साथ वह वहां से रवाना हुआ|’ कथा समाप्त कर गुरु ने शिष्य से कहा, ‘संसार भी ऐसा ही शीशमहल है| इसमें व्यक्ति अपने विचारों के अनुरूप ही प्रतिक्रिया पाता है| जो लोग संसार को आनंद का बाजार मानते हैं, वे यहां से हर प्रकार के सुख-आनंद के अनुभव लेकर जाते हैं| जो लोग इसे दुखों का कारागार समझते हैं उनकी झोली में दुःख-कटुता के सिवाय कुछ नहीं बचता|’
एक बार की बात है . एक व्यक्ति को रोज़-रोज़ जुआ खेलने की बुरी आदत पड़ गयी थी . उसकी इस आदत से सभी बड़े परेशान रहते. लोग उसे समझाने कि भी बहुत कोशिश करते कि वो ये गन्दी आदत छोड़ दे , लेकिन वो हर किसी को एक ही जवाब देता, ” मैंने ये आदत नहीं पकड़ी, इस आदत ने मुझे पकड़ रखा है !!!”
और सचमुच वो इस आदत को छोड़ना चाहता था , पर हज़ार कोशिशों के बावजूद वो ऐसा नहीं कर पा रहा था.
परिवार वालों ने सोचा कि शायद शादी करवा देने से वो ये आदत छोड़ दे , सो उसकी शादी करा दी गयी. पर कुछ दिनों तक सब ठीक चला और फिर से वह जुआ खेलने जाना लगा. उसकी पत्नी भी अब काफी चिंतित रहने लगी , और उसने निश्चय किया कि वह किसी न किसी तरह अपने पति की इस आदत को छुड़वा कर ही दम लेगी.
एक दिन पत्नी को किसी सिद्ध साधु-महात्मा के बारे में पता चला, और वो अपने पति को लेकर उनके आश्रम पहुंची. साधु ने कहा, ” बताओ पुत्री तुम्हारी क्या समस्या है ?”
पत्नी ने दुखपूर्वक सारी बातें साधु-महाराज को बता दी .
साधु-महाराज उनकी बातें सुनकर समस्या कि जड़ समझ चुके थे, और समाधान देने के लिए उन्होंने पति-पत्नी को अगले दिन आने के लिए कहा .
अगले दिन वे आश्रम पहुंचे तो उन्होंने देखा कि साधु-महाराज एक पेड़ को पकड़ के खड़े है .
उन्होंने साधु से पूछा कि आप ये क्या कर रहे हैं ; और पेड़ को इस तरह क्यों पकडे हुए हैं ?
साधु ने कहा , ” आप लोग जाइये और कल आइयेगा .”
फिर तीसरे दिन भी पति-पत्नी पहुंचे तो देखा कि फिर से साधु पेड़ पकड़ के खड़े हैं .
उन्होंने जिज्ञासा वश पूछा , ” महाराज आप ये क्या कर रहे हैं ?”
साधु बोले, ” पेड़ मुझे छोड़ नहीं रहा है .आप लोग कल आना .”
पति-पत्नी को साधु जी का व्यवहार कुछ विचित्र लगा , पर वे बिना कुछ कहे वापस लौट गए.
अगले दिन जब वे फिर आये तो देखा कि साधु महाराज अभी भी उसी पेड़ को पकडे खड़े है.
पति परेशान होते हुए बोला ,” बाबा आप ये क्या कर रहे हैं ?, आप इस पेड़ को छोड़ क्यों नहीं देते?”
साधु बोले ,”मैं क्या करूँ बालक ये पेड़ मुझे छोड़ ही नहीं रहा है ?”
पति हँसते हुए बोला , “महाराज आप पेड़ को पकडे हुए हैं , पेड़ आप को नहीं !….आप जब चाहें उसे छोड़ सकते हैं.”
साधू-महाराज गंभीर होते हुए बोले, ” इतने दिनों से मै तुम्हे क्या समझाने कि कोशिश कर रहा हूँ .यही न कि तुम जुआ खेलने की आदत को पकडे हुए हो ये आदत तुम्हे नहीं पकडे हुए है!”
पति को अपनी गलती का अहसास हो चुका था , वह समझ गया कि किसी भी आदत के लिए वह खुद जिम्मेदार है ,और वह अपनी इच्छा शक्ति के बल पर जब चाहे उसे छोड़ सकता है.
दरबार में बीरबल से जलने वालों की कमी नहीं थी।
बादशाह अकबर का साला तो कई बार बीरबल से मात खाने के बाद भी बाज न आता था। बेगम का भाई होने के कारण अक्सर बेगम की ओर से भी बादशाह को दबाव सहना पड़ता था।
ऐसे ही एक बार साले साहब स्वयं को बुद्धिमान बताते हुए दीवान पद की मांग करने लगे। बीरबल अभी दरबार में नहीं आया था। अतः बादशाह अकबर ने साले साहब से कहा- 'मुझे आज सुबह महल के पीछे से कुत्ते के पिल्ले की आवाजें सुनाई दे रही थीं, शायद कुतिया ने बच्चे दिए हैं। देखकर आओ, फिर बताओ कि यह बात सही है या नहीं ?’
साले साहब चले गए, कुछ देर बाद लौटकर बोले- 'हुजूर आपने सही फरमाया, कुतिया ही ने बच्चे दिए हैं।'
'अच्छा कितने बच्चे हैं? बादशाह ने पूछा।
'हुजूर वह तो मैंने गिने नहीं।’
'गिनकर आओ।’
साले साहब गए और लौटकर बोले- 'हुजूर पांच बच्चे हैं?’
'कितने नर हैं…कितने मादा?' बादशाह ने फिर पूछा।
'वह तो नहीं देखा।’
'जाओ देखकर आओ।’
आदेश पाकर साले साहब फिर गए और लौटकर जवाब दिया- 'तीन नर, दो मादा हैं हुजूर।’
'नर पिल्ले किस रंग के हैं?’
'हुजूर वह देखकर अभी आता हूं।’
'रहने दो…बैठ जाओ।' बादशाह ने कहा।
बीरबल के दरबार में हाजिर होने पर बादशाह ने क्या किया...
साले साहब बैठ गए। कुछ देर बाद बीरबल दरबार में आया। तब बादशाह अकबर बोले- 'बीरबल, आज सुबह से महल के पीछे से पिल्लों की आवाजें आ रही हैं, शायद कुतिया ने बच्चे दिए हैं, जाओ देखकर आओ माजरा क्या है!’
'जी हुजूर।' बीरबल चला गया और कुछ देर बाद लौटकर बोला- 'हुजूर आपने सही फरमाया…कुतिया ने ही बच्चे दिए हैं।’
'कितने बच्चे हैं?’
'हुजूर पांच बच्चे हैं।’
'कितने नर हैं…। कितने मादा।’
'हुजूर, तीन नर हैं…दो मादा।’
'नर किस रंग के हैं?’
'दो काले हैं, एक बादामी है।’
'ठीक है बैठ जाओ।’
बादशाह अकबर ने अपने साले की ओर देखा, वह सिर झुकाए चुपचाप बैठा रहा। बादशाह ने उससे पूछा- 'क्यों तुम अब क्या कहते हो ?’
उससे कोई जवाब देते न बना।
दोस्तों यह कहानी पढ़ कर एक बात तो समझ में आती है की हमारी सफलता भी हमारे नजर,अवलोकन क्षमता पर ही निर्भर है की हम कितने तेज है ।।
कई लोग एक काम को बार बार करके भी नही कर पाते जबकि कई लोग किसी काम को एक बार में ही कर के पूरा कर देते है ।।। यह आपकी योग्यता पर निर्भर है ।।।
आखिर उसने निर्णय लिया कि गधा काफी बूढा हो चूका था, उसे बचाने से कोई लाभ होने वाला नहीं था इसलिए उसे कुएं में ही दफना देना चाहिए।
किसान ने अपने सभी पड़ोसियों को मदद के लिए बुलाया। सभी ने एक-एक फावड़ा पकड़ा और कुएं में मिट्टी डालनी शुरू कर दी। जैसे ही गधे कि समझ में आया कि यह क्या हो रहा है, वह और जोर से चीख कर रोने लगा। और फिर, अचानक वह आश्चर्यजनक रुप से शांत हो गया।
सब लोग चुपचाप कुएं में मिट्टी डालते रहे। तभी किसान ने कुएं में झांका तो वह हैरान रह गया। अपनी पीठ पर पड़ने वाले हर फावड़े की मिट्टी के साथ वह गधा एक आश्चर्यजनक हरकत कर रहा था। वह हिल-हिल कर उस मिट्टी को नीचे गिरा देता था और फिर एक कदम बढ़ाकर उस पर चढ़ जाता था।
जैसे-जैसे किसान तथा उसके पड़ोसी उस पर फावड़ों से मिट्टी गिराते वैसे वह हिल कर उस मिट्टी को गिरा देता और एस सीढी ऊपर चढ़ आता । जल्दी ही सबको आश्चर्यचकित करते हुए वह गधा कुएं के किनारे पर पहुंच गया और फिर कूदकर बाहर भाग गया।
गंगा के तट पर एक संत अपने शिष्यों को शिक्षा दे रहे थे, तभी एक शिष्य ने पुछा , “ गुरू जी , यदि हम कुछ नया … कुछ अच्छा करना चाहते हैं पर समाज उसका विरोध करता है तो हमें क्या करना चाहिए ?”
गुरु जी ने कुछ सोचा और बोले ,” इस प्रश्न का उत्तर मैं कल दूंगा .”
Three Sticks तीन डंडियांअगले दिन जब सभी शिष्य नदी के तट पर एकत्रित हुए तो गुरु जी बोले , “ आज हम एक प्रयोग करेंगे … इन तीन मछली पकड़ने वाली डंडियों को देखो , ये एक ही लकड़ी से बनी हैं और बिलकुल एक समान हैं .”
उसके बाद गुरु जी ने उस शिष्य को आगे बुलाया जिसने कल प्रश्न किया था .
“ पुत्र , ये लो इस डंडी से मछली पकड़ो .”, गुरु जी ने निर्देश दिया .
शिष्य ने डंडी से बंधे कांटे में आंटा लगाया और पानी में डाल दिया . फ़ौरन ही एक बड़ी मछली कांटे में आ फंसी …” जल्दी …पूरी ताकत से बाहर की ओर खींचो :, गुरु जी बोले
शिष्य ने ऐसा ही किया ,उधर मछली ने भी पूरी ताकत से भागने की कोशिश की …फलतः डंडी टूट गयी .
“कोई बात नहीं ; ये दूसरी डंडी लो और पुनः प्रयास करो …”, गुरु जी बोले .
शिष्य ने फिर से मछली पकड़ने के लिए काँटा पानी में डाला .
इस बार जैसे ही मछली फंसी , गुरु जी बोले , “ आराम से… एकदम हल्के हाथ से डंडी को खींचो .”
शिष्य ने ऐसा ही किया , पर मछली ने इतनी जोर से झटका दिया कि डंडी हाथ से छूट गयी .
गुरु जी ने कहा , “ओह्हो , लगता है मछली बच निकली , चलो इस आखिरी डंडी से एक बार फिर से प्रयत्न करो .”
शिष्य ने फिर वही किया .
पर इस बार जैसे ही मछली फंसी गुरु जी बोले , “ सावधान , इस बार न अधिक जोर लगाओ न कम …. बस जितनी शक्ति से मछली खुद को अंदर की ओर खींचे उतनी ही शक्ति से तुम डंडी को बाहर की ओर खींचो .. कुछ ही देर में मछली थक जायेगी और तब तुम आसानी से उसे बाहर निकाल सकते हो”
शिष्य ने ऐसा ही किया और इस बार मछली पकड़ में आ गयी .
“ क्या समझे आप लोग ?” गुरु जी ने बोलना शुरू किया …” ये मछलियाँ उस समाज के समान हैं जो आपके कुछ करने पर आपका विरोध करता है . यदि आप इनके खिलाफ अधिक शक्ति का प्रयोग करेंगे तो आप टूट जायेंगे , यदि आप कम शक्ति का प्रयोग करेंगे तो भी वे आपको या आपकी योजनाओं को नष्ट कर देंगे…लेकिन यदि आप उतने ही बल का प्रयोग करेंगे जितने बल से वे आपका विरोध करते हैं तो धीरे -धीरे वे थक जाएंगे … हार मान लेंगे … और तब आप जीत जायेंगे …इसलिए कुछ उचित करने में जब ये समाज आपका विरोध करे तो समान बल प्रयोग का सिद्धांत अपनाइये और अपने लक्ष्य को प्राप्त कीजिये . ”
यदि जीवन में सफल होना है तो सफल व्यक्ति की तरह काम करना चाहिए और उसके बताए रास्ते पर चलना चाहिए पर रतन टाटा ऐसा नहीं मानते हैं उनका कहना है कि ‘प्रत्येक व्यक्ति में कुछ विशेष गुण एवं कुछ विशेष प्रतिभाएं होती हैं इसलिए व्यक्ति को सफलता प्राप्त करने के लिए अपने गुणों की पहचान करनी चाहिए’. यहां तक कि रतन टाटा ने सायरश मिस्त्री को भी यही कहा था कि ‘कभी भी रतन टाटा बनने की कोशिश मत करना’
दूसरों की नकल करने वाले व्यक्ति थोड़े समय के लिए सफलता तो प्राप्त कर सकते हैं परंतु जीवन में बहुत आगे नहीं बढ़ सकते हैं
अपने जीवन की परिस्थितियों और अपनी प्रतिभाओं के अनुसार अपने लिए अवसर एवं चुनौतियों को चिन्हित करना चाहिएs
दूसरे सफल लोगों से इस बात की प्रेरणा लेनी चाहिए कि जब वह व्यक्ति सफल हो सकता है तो मैं क्यों नहीं हो सकता हूं पर प्रेरणा लेते समय आंखों को बंद नहीं कर लेना चाहिए
दुनिया में करोड़ो लोग मेहनत करते हैं फिर भी सबको भिन्न-भिन्न परिणाम प्राप्त होते हैं. इस सब के लिए मेहनत करने का तरीका जिम्मेदार है इसलिए व्यक्ति को मेहनत करने के तरीके में सुधार करना चाहिए.
पेड़ काटने के पूर्व कुल्हाड़ी की धार देखने की आवश्यकता होती है इसलिए जब आठ घंटे में पेड़ काटना हो तो छः घंटे कुल्हाड़ी की धार तेज करने में लगाने पर सफलता प्राप्त होने के अवसर बढ़ जाते हैं.
किसी भी कार्य को निर्धारित समय सीमा में ही पूरा करना चाहिए और वो ही कार्य करना चाहिए जिसमें पूर्ण आनन्द की प्राप्ति हो
अमरीका में जीवन बीमा के विक्रय क्षेत्र में सार्वाधिक ख्याति प्राप्त फ्रैंक बैजर अपने व्यवसाय के आरंभिक काल में असफल हो चुके थे और उन्होंने अपने बीमा कंपनी के पद से पद से इस्तीफा देने का निर्णय ले लिया था। एक दिन वे इस्तीफा लेकर कार्यालय पहुंच गए। उस समय प्रबंधक महोदय अपने विक्रेताओं की बैठक को संबोधित कर रहे थे। बैजर प्रबंधक-कक्ष के बाहर प्रतीक्षा करने लगे। अंदर से आवाज आई-
'मैं जानता हूं कि आप सभी योग्य विक्रेता हैं, किंतु आप यह विशेष ध्यान रखें कि योग्यता से भी अधिक महत्वपूर्ण है उत्साह, आपका जोश, जीवन की ऊर्जा, जो मंजिल की दिशा में आपकी सहायता करती है। आपका उत्साह, आपकी उमंग ही आपको सफलता के शिखर पर पहुंचा सकता है।'
इन शब्दों को सुनकर बैजर ने अपना निर्णय बदल दिया और जेब में रखे इस्तीफे को उसी समय फाड़ दिया। वे फौरन अपने घर चले गए। दूसरे दिन से फ्रैंक बैजर ने अपने काम को बड़े उत्साह के साथ करना शुरू किया। उनके उत्साह से ग्राहक इतने प्रभावित हुए कि कुछ वर्षों में वे अमरीका के नंबर वन सेल्समैन बन गए।
निष्कर्ष:
उत्साही जीवन के संघर्ष में धन की आवश्यकता नहीं होती, बल्कि धन के बार-बार नष्ट हो जाने पर भी व्यक्ति उसे पैदा कर लेता है। उत्साह वह अग्नि है जो हमारे शरीर रूपी इंजन के लिए भाप तैयार करती है।
एक बार एक बिज़नेसमैन जो कल तक एक सफल उद्धोगपति था अचानक किसी परेशानी से उसका बिज़नेस डूब गया और उस पर बैंक का कर्ज़ा भी हो गया और अब उसके पास कोई चारा नहीं बचा था| बैंक और सारे लेनदार उसे लगातार पैसे की भरपाई के लिए बोल रहे थे| अब तो उसे अपनी जिंदगी अंधेरे में नज़र आ रही थी| एक बार सुबह पार्क में घूमते हुए उसे एक बूढ़ा व्यक्ति दिखाई दिया| वो बूढ़ा उसके पास आया और उसे परेशान देखकर उससे परेशानी का कारण पूछा |
बिज़नेसमैन ने सारी परेशानी व्रद्ध को बताई, बूढ़े व्यक्ति ने अपनी जेब से अपनी चेकबुक निकाली और एक चेक साइन कर के उसको दिया और कहा कि इससे तुम अपना बिज़नेस फिर से शुरू कर सकते हो और एक साल बाद मुझे ठीक इसी जगह इसी समय मिलना और मुझे मेरे पैसे वापस कर देना | यह कहते हुए बूढ़ा वहाँ से दूर चला गया| बिज़नेसमैन ने जब अपने हाथ में रखे चेक पर नज़र डाली तो वह हैरान रह गया क्यूंकी वो बूढ़ा कोई मामूली व्यक्ति नहीं था उस चेक पर सर वारेन बफ़ेट(एक मशहूर अमेरिकन उद्धयोगपति) के साइन थे और चेक की रकम थी $500,000| उसको खुद पर यकीन नहीं हुआ कि खुद वारेन बफ़ेट ने आकर मेरी परेशानी हल की है | फिर उसने सोचा की ये रकम बैंक और लेनदारों को देने की बजाए वो पहले अपने बिज़नेस को बचाने के लिए संघर्ष करेगा और इमरजेंसी में ही उस चेक का प्रयोग करेगा |
अब तो बिना किसी डर के वह फिर से अपना बिज़नेस बचाने में जुट गया क्यूंकी उसे पता था कि अगर कोई परेशानी होगी तो मैं चेक की मदद से बच सकता हूँ | बस फिर क्या था उसने जी तोड़ मेहनत की और एक बार फिर से अपने बिज़नेस को वापस खड़ा कर दिया | आज उस बात को एक साल पूरा हो चुका था और वह चेक भी आज तक ऐसे ही सही सलामत था |
अपना वादा पूरा करने के लिए बिज़नेसमैन जब पार्क में गया तो उसे वहाँ वही बूढ़ा व्यक्ति दिखाई दिया| जैसे ही वह उसके पास आया अचानक एक नर्स पीछे से आई और व्रद्ध को पकड़ के ले गयी और कहा कि वह एक पागलख़ाने से भागा हुआ पागल है जो खुद को हमेशा वारेन बफ़ेट बताता है, यह कहकर नर्स व्रद्ध को ले गयी|
अब वह आदमी एक दम आश्चर्य में था क्यूकी वह बूढ़ा ना तो बफ़ेट था और ना ही वह चेक असली था, जिस पर उसे इतना विश्वास था | उसकी आँखों में आँसू छलक आए क्यूकी उसने आज एक नकली रकम की वजह से जागे अपने आत्मविश्वास से आज सफलता प्राप्त कर ली थी जबकि वह पैसा कुछ था ही नहीं |
तो मित्रों, दुनियाँ मे कुछ भी असंभव नहीं है बस अपना आत्मविश्वश जगाने की ज़रूरत है और एक बार जब आप आत्मविश्वास से भरपूर हो जाएँगे तो दुनियाँ की कोई बंदिश आपको नहीं रोक सकती |
महाशय धरमपाल हट्टी(M.D.H), आज ये नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है| “मसाला किंग”(M.D.H) के नाम से मशहूर महाशय जी आज सफलता की बुलंदियों पर हैं, लेकिन इस सफलता के पीछे एक बहुत सघर्ष भरी कहानी है|
इनका जन्म सियालकोट(जो अब पाकिस्तान में है) में हुआ था| ये एक सामान्य परिवार से ताल्लुक रखते थे, परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी न थी| महाशय जी जब धीरे धीरे बड़े हुए तो स्कूल में दाखिला कराया ये बचपन से ही पढ़ाई में बहुत कमजोर थे पढ़ने लिखने में बिल्कुल मन नहीं लगता था| इनके पिता इनको बहुत समझाते लेकिन महाशय जी बिल्कुल भी पढ़ाई पर ध्यान नहीं देते थे, इसी वजह से पाँचवी कक्षा में वो फेल हो गये और इसी के साथ उन्होनें स्कूल जाना भी छोड़ दिया| पिता ने इनको इसके बाद एक बढ़ई की दुकान पर काम सीखने के लिए भेज दिया| कुछ दिन बाद इनका मन बढ़ई के काम में नहीं लगा तो छोड़ दिया| धीरे धीरे समय आगे बढ़ता गया, इसी बीच महाशय जी 15 साल की उम्र तक करीब 50 काम बदल चुके थे| उन दिनों सियालकोट लाल मिर्च के लिए बहुत प्रसिद्ध था, यही सोचकर महाशय जी के पिताजी ने एक छोटी सी मसाले की दुकान करा दी धीरे धीरे व्यापार अच्छा बढ़ने लगा| लेकिन उन दिनों आज़ादी का आंदोलन अपने चरम पे था| 1947, में जब देश आज़ाद हुआ तो सियालकोट पाकिस्तान का हिस्सा बन चुका था और वहाँ रह रहे हिंदू असुरक्षा महसूस कर रहे थे और दंगे भी काफ़ी भड़क चुके थे इसी डर से उन्हें सियालकोट छोड़ना पड़ा| महाशय जी के अनुसार उन दिनों स्थिति बहुत भयावह थी, चारों तरफ मारामारी मची हुई थी| इन्हें भी अपना घर बार छोड़ कर भागना पढ़ा| बड़ी ही दिक्कत और मुश्किलों से वो नानक डेरा(भारत) पहुचे पर अभी वो शरणार्थी थे अपना सब कुछ लूट चुका था| इसके बाद स्पारिवार कई मीलों चलकर ये अमृतसर पहुचे| दिल्ली में इनके एक रिश्तेदार रहते थे, यही सोच कर महाशय जी करोलबाग देल्ही आ गये| उस समय उनके पास केवल 1500 रुपये थे कोई काम धंधा था नहीं| उन्होनें कुछ पैसे जुटाकर एक तांगा-घोड़ा खरीद लिया| और इस तरह वो बन गये एक तांगा चालक|
लेकिन कुदरत को कुछ और ही मंजूर था, करीब २ महीने तक उन्होने कुतुब रोड दिल्ली पर तांगा चलाया| इसके बाद उन्हें लगा की वो ये कम नहीं कर पाएँगे| लेकिन मसाले के सिवा वो कोई दूसरा कम जानते भी नहीं थे, कुछ सोचकर उन्होने घर पे ही मसाले का काम करने लगे| बाज़ार से मसाला लाकर घर पर ही उसे कुटते थे और बाज़ार में बेचते थे| उनकी ईमानदारी और मसालों की शुद्धता की वजह से उनका कारोबार धीरे धीरे बढ़ने लगा| डिमांड ज़्यादा हुई तो मसाले घर ना पीसकर एक व्यापारी के यहाँ चक्की पर पिसवाते थे| एक दिन जब व्यापारी से मिलने गये तो उन्होने देखा कि वह मसालों में मिलावट करता था ये देखकर महाशय जी को मन ही मन बहुत दुख हुआ और उन्होने खुद की मसाला पीसने की फॅक्टरी लगाने की सोची|
किर्तिनगर में इन्होने पहली फैक्टरी लगाई और उस दिन के बाद महाशय जी ने पीछे मुड़कर नहीं देखा और एक के बाद एक पूरे विश्व भर में अपने कारोबार को फैलाया|आज .M.D.H. एक बड़ा ब्रांड बन चुका है और पूरे विश्व में फैला हुआ है| आज महाशय जी बहुत बड़े अरबपति उद्धयोग के मलिक हैं|
महाशय जी की इस छवि से हटकर एक रूप और है वो है समाज सेवा| पूरे भारत में कई जगह उनके द्वारा संचालित विद्धयालय और अस्पताल हैं|
कहा जाता है क़ि “इंसान अपनी परिस्थितियों का नहीं अपने फ़ैसलों और कर्मों का परिणाम होता है”, ऐसा ही कुछ सीखने को मिलता है महाशय जी के जीवन से|
तो आओ मित्रों हम भी इस महान पुरुष के जीवन से प्रेरणा लेकर सफल बनने का प्रयास करते हैं
पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले
पुस्तकों में है नहीं छापी गई इसकी कहानी,
हाल इसका ज्ञात होता है न औरों की ज़बानी,
अनगिनत राही गए इस राह से, उनका पता क्या,
पर गए कुछ लोग इस पर छोड़ पैरों की निशानी,
यह निशानी मूक होकर भी बहुत कुछ बोलती है,
खोल इसका अर्थ, पंथी, पंथ का अनुमान कर ले।
पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले।
है अनिश्चित किस जगह पर सरित, गिरि, गह्वर मिलेंगे,
है अनिश्चित किस जगह पर बाग वन सुंदर मिलेंगे,
किस जगह यात्रा ख़तम हो जाएगी, यह भी अनिश्चित,
है अनिश्चित कब सुमन, कब कंटकों के शर मिलेंगे
कौन सहसा छूट जाएँगे, मिलेंगे कौन सहसा,
आ पड़े कुछ भी, रुकेगा तू न, ऐसी आन कर ले।
पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले।
कौन कहता है कि स्वप्नों को न आने दे हृदय में,
देखते सब हैं इन्हें अपनी उमर, अपने समय में,
और तू कर यत्न भी तो, मिल नहीं सकती सफलता,
ये उदय होते लिए कुछ ध्येय नयनों के निलय में,
किन्तु जग के पंथ पर यदि, स्वप्न दो तो सत्य दो सौ,
स्वप्न पर ही मुग्ध मत हो, सत्य का भी ज्ञान कर ले।
पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले।
स्वप्न आता स्वर्ग का, दृग-कोरकों में दीप्ति आती,
पंख लग जाते पगों को, ललकती उन्मुक्त छाती,
रास्ते का एक काँटा, पाँव का दिल चीर देता,
रक्त की दो बूँद गिरतीं, एक दुनिया डूब जाती,
आँख में हो स्वर्ग लेकिन, पाँव पृथ्वी पर टिके हों,
कंटकों की इस अनोखी सीख का सम्मान कर ले।
पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले।
यह बुरा है या कि अच्छा, व्यर्थ दिन इस पर बिताना,
अब असंभव छोड़ यह पथ दूसरे पर पग बढ़ाना,
तू इसे अच्छा समझ, यात्रा सरल इससे बनेगी,
सोच मत केवल तुझे ही यह पड़ा मन में बिठाना,
हर सफल पंथी यही विश्वास ले इस पर बढ़ा है,
तू इसी पर आज अपने चित्त का अवधान कर ले।
पूर्व चलने के बटोही, बाट की पहचान कर ले।
~ पथ की पहचान / हरिवंशराय बच्चन
एक बार एक बिज़नेसमैन जो कल तक एक सफल उद्धोगपति था अचानक किसी परेशानी से उसका बिज़नेस डूब गया और उस पर बैंक का कर्ज़ा भी हो गया और अब उसके पास कोई चारा नहीं बचा था| बैंक और सारे लेनदार उसे लगातार पैसे की भरपाई के लिए बोल रहे थे| अब तो उसे अपनी जिंदगी अंधेरे में नज़र आ रही थी| एक बार सुबह पार्क में घूमते हुए उसे एक बूढ़ा व्यक्ति दिखाई दिया| वो बूढ़ा उसके पास आया और उसे परेशान देखकर उससे परेशानी का कारण पूछा |
बिज़नेसमैन ने सारी परेशानी व्रद्ध को बताई, बूढ़े व्यक्ति ने अपनी जेब से अपनी चेकबुक निकाली और एक चेक साइन कर के उसको दिया और कहा कि इससे तुम अपना बिज़नेस फिर से शुरू कर सकते हो और एक साल बाद मुझे ठीक इसी जगह इसी समय मिलना और मुझे मेरे पैसे वापस कर देना | यह कहते हुए बूढ़ा वहाँ से दूर चला गया| बिज़नेसमैन ने जब अपने हाथ में रखे चेक पर नज़र डाली तो वह हैरान रह गया क्यूंकी वो बूढ़ा कोई मामूली व्यक्ति नहीं था उस चेक पर सर वारेन बफ़ेट(एक मशहूर अमेरिकन उद्धयोगपति) के साइन थे और चेक की रकम थी $500,000| उसको खुद पर यकीन नहीं हुआ कि खुद वारेन बफ़ेट ने आकर मेरी परेशानी हल की है | फिर उसने सोचा की ये रकम बैंक और लेनदारों को देने की बजाए वो पहले अपने बिज़नेस को बचाने के लिए संघर्ष करेगा और इमरजेंसी में ही उस चेक का प्रयोग करेगा |
अब तो बिना किसी डर के वह फिर से अपना बिज़नेस बचाने में जुट गया क्यूंकी उसे पता था कि अगर कोई परेशानी होगी तो मैं चेक की मदद से बच सकता हूँ | बस फिर क्या था उसने जी तोड़ मेहनत की और एक बार फिर से अपने बिज़नेस को वापस खड़ा कर दिया | आज उस बात को एक साल पूरा हो चुका था और वह चेक भी आज तक ऐसे ही सही सलामत था |
अपना वादा पूरा करने के लिए बिज़नेसमैन जब पार्क में गया तो उसे वहाँ वही बूढ़ा व्यक्ति दिखाई दिया| जैसे ही वह उसके पास आया अचानक एक नर्स पीछे से आई और व्रद्ध को पकड़ के ले गयी और कहा कि वह एक पागलख़ाने से भागा हुआ पागल है जो खुद को हमेशा वारेन बफ़ेट बताता है, यह कहकर नर्स व्रद्ध को ले गयी|
अब वह आदमी एक दम आश्चर्य में था क्यूकी वह बूढ़ा ना तो बफ़ेट था और ना ही वह चेक असली था, जिस पर उसे इतना विश्वास था | उसकी आँखों में आँसू छलक आए क्यूकी उसने आज एक नकली रकम की वजह से जागे अपने आत्मविश्वास से आज सफलता प्राप्त कर ली थी जबकि वह पैसा कुछ था ही नहीं |
तो मित्रों, दुनियाँ मे कुछ भी असंभव नहीं है बस अपना आत्मविश्वश जगाने की ज़रूरत है और एक बार जब आप आत्मविश्वास से भरपूर हो जाएँगे तो दुनियाँ की कोई बंदिश आपको नहीं रोक सकती |
वृक्ष हों भले खड़े,
हों घने हों बड़े,
एक पत्र छाँह भी,
माँग मत, माँग मत, माँग मत,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।
तू न थकेगा कभी,
तू न रुकेगा कभी,
तू न मुड़ेगा कभी,
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।
यह महान दृश्य है,
चल रहा मनुष्य है,
अश्रु श्वेत रक्त से,
लथपथ लथपथ लथपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।
~ अग्निपथ / हरिवंश राय बच्चन
हों घने हों बड़े,
एक पत्र छाँह भी,
माँग मत, माँग मत, माँग मत,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।
तू न थकेगा कभी,
तू न रुकेगा कभी,
तू न मुड़ेगा कभी,
कर शपथ, कर शपथ, कर शपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।
यह महान दृश्य है,
चल रहा मनुष्य है,
अश्रु श्वेत रक्त से,
लथपथ लथपथ लथपथ,
अग्निपथ अग्निपथ अग्निपथ।
~ अग्निपथ / हरिवंश राय बच्चन
छोटी-छोटी बाधाओं को पहाड़ ना समझें, बिना समय गंवाएं उनसे लड़ें !
- May 02, 2017
- By Yash Pradeep
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एक किसान था. उसके खेत में एक पत्थर का एक हिस्सा ज़मीन से ऊपर निकला हुआ था जिससे ठोकर खाकर वह कई बार गिर चुका था और कितनी ही बार उससे टकराकर खेती के औजार भी टूट रोजाना की तरह आज भी वह सुबह-सुबह खेती करने पहुंचा और इस बार वही हुआ, किसान का हल पत्थर से टकराकर टूट गया. किसान क्रोधित हो उठा, और उसने निश्चय किया कि आज जो भी हो जाए वह इस चट्टान को ज़मीन से निकाल कर इस खेत के बाहर फ़ेंक देगा.
वह तुरंत गाँव से ४-५ लोगों को बुला लाया और सभी को लेकर वह उस पत्त्थर के पास पहुंचा और बोल, ” यह देखो ज़मीन से निकले चट्टान के इस हिस्से ने मेरा बहुत नुक्सान किया है, और आज हम सभी को मिलकर इसे आज उखाड़कर खेत के बाहर फ़ेंक देना है.” और ऐसा कहते ही वह फावड़े से पत्थर के किनार वार करने लगा, पर यह क्या ! अभी उसने एक-दो बार ही मारा था कि पूरा-का पूरा पत्थर ज़मीन से बाहर निकल आया. साथ खड़े लोग भी अचरज में पड़ गए और उन्ही में से एक ने हँसते हुए पूछा , “क्यों भाई , तुम तो कहते थे कि तुम्हारे खेत के बीच में एक बड़ी सी चट्टान दबी हुई है , पर ये तो एक मामूली सा पत्थर निकला ??”
किसान भी आश्चर्य में पड़ गया सालों से जिसे वह एक भारी-भरकम चट्टान समझ रहा था दरअसल वह बस एक छोटा सा पत्थर था ! उसे पछतावा हुआ कि काश उसने पहले ही इसे निकालने का प्रयास किया होता तो ना उसे इतना नुकसान उठाना पड़ता और ना ही दोस्तों के सामने उसका मज़ाक बनता .
हम भी कई बार ज़िन्दगी में आने वाली छोटी-छोटी बाधाओं को बहुत बड़ा समझ लेते हैं और उनसे निपटने की बजाय तकलीफ उठाते रहते हैं. ज़रुरत इस बातकी है कि हम बिना समय गंवाएं उन मुसीबतों से लडें , और जब हम ऐसा करेंगे तो कुछ ही समय में चट्टान सी दिखने वाली समस्या एक छोटे से पत्थर के समान दिखने लगेगी जिसे हम आसानी से हल पाकर आगे बढ़ सकते हैं.
वह तुरंत गाँव से ४-५ लोगों को बुला लाया और सभी को लेकर वह उस पत्त्थर के पास पहुंचा और बोल, ” यह देखो ज़मीन से निकले चट्टान के इस हिस्से ने मेरा बहुत नुक्सान किया है, और आज हम सभी को मिलकर इसे आज उखाड़कर खेत के बाहर फ़ेंक देना है.” और ऐसा कहते ही वह फावड़े से पत्थर के किनार वार करने लगा, पर यह क्या ! अभी उसने एक-दो बार ही मारा था कि पूरा-का पूरा पत्थर ज़मीन से बाहर निकल आया. साथ खड़े लोग भी अचरज में पड़ गए और उन्ही में से एक ने हँसते हुए पूछा , “क्यों भाई , तुम तो कहते थे कि तुम्हारे खेत के बीच में एक बड़ी सी चट्टान दबी हुई है , पर ये तो एक मामूली सा पत्थर निकला ??”
किसान भी आश्चर्य में पड़ गया सालों से जिसे वह एक भारी-भरकम चट्टान समझ रहा था दरअसल वह बस एक छोटा सा पत्थर था ! उसे पछतावा हुआ कि काश उसने पहले ही इसे निकालने का प्रयास किया होता तो ना उसे इतना नुकसान उठाना पड़ता और ना ही दोस्तों के सामने उसका मज़ाक बनता .
हम भी कई बार ज़िन्दगी में आने वाली छोटी-छोटी बाधाओं को बहुत बड़ा समझ लेते हैं और उनसे निपटने की बजाय तकलीफ उठाते रहते हैं. ज़रुरत इस बातकी है कि हम बिना समय गंवाएं उन मुसीबतों से लडें , और जब हम ऐसा करेंगे तो कुछ ही समय में चट्टान सी दिखने वाली समस्या एक छोटे से पत्थर के समान दिखने लगेगी जिसे हम आसानी से हल पाकर आगे बढ़ सकते हैं.
रेत और चीनी
बादशाह अकबर के दरबार की कार्यवाही चल रही थे, तभी एक दरबारी हाथ में शीशे का एक मर्तबान लिए वहां आया। बादशाह ने पूछा- 'क्या है इस मर्तबान में?'
दरबारी बोला- 'इसमें रेत और चीनी का मिश्रण है।'
'वह किसलिए' - फिर पूछा बादशाह अकबर ने।
'माफी चाहता हूं हुजूर' - दरबारी बोला। 'हम बीरबल की काबिलियत को परखना चाहते हैं, हम चाहते हैं की वह रेत से चीनी का दाना-दाना अलग कर दे।'
बादशाह अब बीरबल से मुखातिब हुए, - 'देख लो बीरबल, रोज ही तुम्हारे सामने एक नई समस्या रख दी जाती है, अब तुम्हे बिना पानी में घोले इस रेत में से चीनी को अलग करना है।'
'कोई समस्या नहीं जहांपनाह' - बीरबल बोले। यह तो मेरे बाएं हाथ का काम है, कहकर बीरबल ने मर्तबान उठाया और चल दिया दरबार से बाहर!
बीरबल बाग में पहुंचकर रुका और मर्तबान में भरा सारा मिश्रण आम के एक बड़े पेड़ के चारों और बिखेर दिया- 'यह तुम क्या कर रहे हो?' - एक दरबारी ने पूछा
बीरबल बोले, - 'यह तुम्हे कल पता चलेगा।'
अगले दिन फिर वे सभी उस आम के पेड़ के नीचे जा पहुंचे, वहां अब केवल रेत पड़ी थी, चीनी के सारे दाने चीटियां बटोर कर अपने बिलों में पहुंचा चुकी थीं, कुछ चीटियां तो अभी भी चीनी के दाने घसीट कर ले जाती दिखाई दे रही थीं!
'लेकिन सारी चीनी कहां चली गई?' दरबारी ने पूछा
'रेत से अलग हो गई' - बीरबल ने कहा।
सभी जोर से हंस पड़ें,
बादशाह ने दरबारी से कहा कि अब तुम्हें चीनी चाहिए तो चीटियों के बिल में घुसों।'
सभी ने जोर का ठहाका लगाया और बीरबल की अक्ल की दाद दी।
पैसे की थैली किसकी
दरबार लगा हुआ था। बादशाह अकबर राज-काज देख रहे थे। तभी दरबान ने सूचना दी कि दो व्यक्ति अपने झगड़े का निपटारा करवाने के लिए आना चाहते हैं।
बादशाह ने दोनों को बुलवा लिया। दोनों दरबार में आ गए और बादशाह के सामने झुककर खड़े हो गए।
'कहो क्या समस्या है तुम्हारी?' बादशाह ने पूछा।
'हुजूर मेरा नाम काशी है, मैं तेली हूं और तेल बेचने का धंधा करता हूं और हुजूर यह कसाई है।
इसने मेरी दुकान पर आकर तेल खरीदा और साथ में मेरी पैसों की भरी थैली भी ले गया। जब मैंने इसे पकड़ा और अपनी थैली मांगी तो यह उसे अपनी बताने लगा, हुजूर अब आप ही न्याय करें।’
'जरूर न्याय होगा, अब तुम कहो तुम्हें क्या कहना है?' बादशाह ने कसाई से कहा। 'हुजूर मेरा नाम रमजान है और मैं कसाई हूं, हुजूर, जब मैंने अपनी दुकान पर आज मांस की बिक्री के पैसे गिनकर थैली जैसे ही उठाई, यह तेली आ गया और मुझसे यह थैली छीन ली। अब उस पर अपना हक जमा रहा है, हुजूर, मुझ गरीब के पैसे वापस दिला दीजिए।’
दोनों की बातें सुनकर बादशाह सोच में पड़ गए। उन्हें समझ नहीं आ रहा था कि वह किसके हाथ फैसला दें। उन्होंने बीरबल से फैसला करने को कहा।
बीरबल ने उससे पैसों की थैली ले ली और दोनों को कुछ देर के लिए बाहर भेज दिया। बीरबल ने सेवक से एक कटोरे में पानी मंगवाया और उस थैली में से कुछ सिक्के निकालकर पानी में डाले और पानी को गौर से देखा। फिर बादशाह से कहा- 'हुजूर, इस पानी में सिक्के डालने से तेल जरा-सा भी अंश पानी में नहीं उभार रहा है। यदि यह सिक्के तेली के होते तो यकीनन उन पर सिक्कों पर तेल लगा होता और वह तेल पानी में भी दिखाई देता।’
बादशाह ने भी पानी में सिक्के डाले, पानी को गौर से देखा और फिर बीरबल की बात से सहमत हो गए।
बीरबल ने उन दोनों को दरबार में बुलाया और कहा- 'मुझे पता चल गया है कि यह थैली किसकी है। काशी, तुम झूठ बोल रहे हो, यह थैली रमजान कसाई की है।’
'हुजूर यह थैली मेरी है।' काशी एक बार फिर बोला।
बीरबल ने सिक्के डले पानी वाला कटोरा उसे दिखाते हुए कहा- 'यदि यह थैली तुम्हारी है तो इन सिक्कों पर कुछ-न-कुछ तेल अवश्य होना चाहिए, पर तुम भी देख लो… तेल तो अंश मात्र भी नजर नहीं आ रहा है।’
काशी चुप हो गया।
बीरबल ने रमजान कसाई को उसकी थैली दे दी और काशी को कारागार में डलवा दिया।
हरिवंशराय बच्चन की एक सुंदर कविता ●•٠
.❝ खवाहिश ❞ नही मुझे ❝ मशहुर ❞ होने की
आप मुझे ❝ पहचानते ❞ हो बस इतना ही काफी है
अच्छे ने ❝ अच्छा ❞ और बुरे ने ❝ बुरा ❞ जाना मुझे
क्यों की जिसकी जितनी ❝ जरुरत ❞ थी
उसने उतना ही पहचाना मुझे !!
.
ज़िन्दगी का ❝ फ़लसफ़ा ❞ भी कितना अजीब है,
शामें ❝ कटती ❞ नहीं, और ❝ साल ❞ गुज़रते चले जा रहे हैं !!
.
एक ❝ अजीब ❞ सी दौड़ है ये ❝ ज़िन्दगी ❞
जीत जाओ तो कई ❝ अपने ❞ पीछे ❝ छूट ❞ जाते हैं,
और हार जाओ तो ❝ अपने ❞ ही पीछे ❝ छोड़ ❞ जाते हैं !!
.
❝ बैठ ❞ जाता हूं ❝ मिट्टी ❞ पे अक्सर...
क्योंकि मुझे अपनी ❝ औकात ❞ अच्छी लगती है !!
.
मैंने ❝ समंदर ❞ से सीखा है जीने का सलीक़ा,
चुपचाप से ❝ बहना ❞ और अपनी ❝ मौज ❞ में रहना !!
.
ऐसा नहीं है कि मुझमें कोई ❝ ऐब ❞ नहीं है
पर ❝ सच कहता हूँ मुझमे कोई ❝ फरेब ❞ नहीं है !!
जल जाते हैं मेरे ❝ अंदाज़ ❞ से मेरे ❝ दुश्मन ❞
क्यूंकि
एक मुद्दत से मैंने
न ❝ मोहब्बत ❞ बदली और न ❝ दोस्त ❞ बदले !!.
एक ❝ घड़ी ❞ ख़रीदकर हाथ मे क्या
बाँध ली - ❝ वक़्त ❞ पीछे ही पड़ गया मेरे !!
❝ सोचा ❞ था ❝ घर ❞ बना कर बैठुंगा सुकून से..
पर घर की ज़रूरतों ने ❝ मुसाफ़िर ❞ बना डाला !!!
❝ सुकून ❞ की बात मत कर ऐ ग़ालिब....
बचपन वाला ❝ इतवार ❞ अब नहीं आता !!
जीवन की ❝ भाग-दौड़ ❞ में -
क्यूँ ❝ वक़्त ❞ के साथ रंगत खो जाती है ?
हँसती-खेलती ❝ ज़िन्दगी ❞ भी आम हो जाती है..
एक सवेरा था जब ❝ हँस ❞ कर उठते थे हम
और आज कई बार
बिना ❝ मुस्कुराये ❞ ही ❝ शाम ❞ हो जाती है !!
कितने ❝ दूर ❞ निकल गए,
रिश्तो को निभाते निभाते..
खुद को ❝ खो ❞ दिया हमने,
अपनों को पाते पाते..
लोग कहते है हम ❝ मुस्कुराते ❞ बहोत है,
और हम थक गए ❝ दर्द ❞ छुपाते छुपाते..
खुश हूँ और सबको ❝ खुश ❞ रखता हूँ,
लापरवाह हूँ फिर भी सबकी ❝ परवाह ❞ करता हूँ..
मालूम है कोई मोल नहीं मेरा,
फिर भी,
कुछ ❝ अनमोल ❞ लोगो से ❝ रिश्ता ❞ रखता हूँ !!
एक आदमी ने भगवान बुद्ध से पुछा : जीवन का मूल्य क्या है?
बुद्ध ने उसे एक Stone दिया और कहा : जा और इस stone का
मूल्य पता करके आ , लेकिन ध्यान रखना stone को बेचना नही है I
वह आदमी stone को बाजार मे एक संतरे वाले के पास लेकर गया और बोला : इसकी कीमत क्या है?
संतरे वाला चमकीले stone को देखकर बोला, "12 संतरे लेजा और इसे मुझे दे जा"
आगे एक सब्जी वाले ने उस चमकीले stone को देखा और कहा
"एक बोरी आलू ले जा और इस stone को मेरे पास छोड़ जा"
आगे एक सोना बेचने वाले के
पास गया उसे stone दिखाया सुनार उस चमकीले stone को देखकर बोला, "50 लाख मे बेच दे" l
उसने मना कर दिया तो सुनार बोला "2 करोड़ मे दे दे या बता इसकी कीमत जो माँगेगा वह दूँगा तुझे..
उस आदमी ने सुनार से कहा मेरे गुरू ने इसे बेचने से मना किया है l
आगे हीरे बेचने वाले एक जौहरी के पास गया उसे stone दिखाया l
जौहरी ने जब उस बेसकीमती रुबी को देखा , तो पहले उसने रुबी के पास एक लाल कपडा बिछाया फिर उस बेसकीमती रुबी की परिक्रमा लगाई माथा टेका l
फिर जौहरी बोला , "कहा से लाया है ये बेसकीमती रुबी? सारी कायनात , सारी दुनिया को बेचकर भी इसकी कीमत नही लगाई जा सकती ये तो बेसकीमती है l"
वह आदमी हैरान परेशान होकर सीधे बुद्ध के पास आया l
अपनी आप बिती बताई और बोला "अब बताओ भगवान , मानवीय जीवन का मूल्य क्या है?
बुद्ध बोले :
संतरे वाले को दिखाया उसने इसकी कीमत "12 संतरे" की बताई l
सब्जी वाले के पास गया उसने इसकी कीमत "1 बोरी आलू" बताई l
आगे सुनार ने "2 करोड़" बताई lऔर जौहरी ने इसे "बेसकीमती" बताया l
अब ऐसा ही मानवीय मूल्य का भी है l
तू बेशक हीरा है..!!लेकिन, सामने वाला तेरी कीमत,
अपनी औकात - अपनी जानकारी - अपनी हैसियत से लगाएगा।
घबराओ मत दुनिया में.. तुझे पहचानने वाले भी मिल जायेगे।
Respect Yourself,
You are very very Unique..